उज्जैन में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग पर गुरु पूर्णिमा 2025 के अवसर पर बस्म आरती

उज्जैन के महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में गुरु पूर्णिमा के दिन बस्म आरती का अद्भुत अनुष्ठान सुबह 12:50 बजे (UTC) किया गया। इस दिन लाखों भक्त इस पवित्र अनुष्ठान को देखने के लिए जुटे, जहाँ धूप, गंगाजल और बस्म के बीच शिव की महिमा गूंज रही थी। यह आरती सिर्फ एक धार्मिक रस्म नहीं, बल्कि जीवन की अस्थायिता का एक गहरा संदेश है — जैसे कि शिव जी जो बस्म से लिपटे हुए हैं, वे भी इस संसार के भूलभुलैया से ऊपर हैं।

गुरु पूर्णिमा: वेद व्यास का जन्मदिन और गुरु की महिमा

गुरु पूर्णिमा 2025 को अषाढ़ माह के अंत और श्रावण माह की शुरुआत के रूप में मनाया गया। यह दिन सिर्फ गुरुओं को समर्पित नहीं, बल्कि महर्षि वेद व्यास के जन्म का भी उत्सव है, जिन्होंने वेदों का संकलन किया और महाभारत लिखा। कबीर दास के इस पंक्ति का अर्थ आज भी पूरी तरह से बरकरार है: "गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लगू पाय। बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताये।" भारतीय संस्कृति में गुरु को ईश्वर से भी ऊपर माना जाता है। वाराणसी की गलियों में इस दिन लाखों शिष्य अपने गुरुओं के चरणों में फूल और दान रखने के लिए जुटते हैं।

बस्म आरती: शिव का त्याग और जीवन का सार

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के पुजारियों ने पंचांग के अनुसार विशेष समय पर शिवलिंग पर बस्म लगाया। शिव पुराण के अनुसार, बस्म वैराग्य का प्रतीक है — वह भस्म जो शिव जी अपने शरीर पर धारण करते हैं, वह इस बात का संकेत है कि सब कुछ अस्थायी है। जो जीवन है, वह एक दिन धूल में बदल जाएगा। यही वजह है कि इस आरती को देखने वाले भक्त अक्सर चुपचाप रो देते हैं। कुछ लोग बस्म को अपने माथे पर लगाते हैं, तो कुछ उसे अपने घर ले जाते हैं — मानो यह धूल ही उनकी आत्मा का संरक्षक बन जाए।

अषाढ़ पूर्णिमा और कान्हा यात्रा की शुरुआत

इस दिन के बाद श्रावण माह की शुरुआत होती है, और इसके साथ ही पूरे उत्तर भारत में कान्हा यात्रा शुरू हो जाती है। लाखों भक्त गंगा, यमुना और नर्मदा के तीर्थों पर नहाकर शिवलिंग पर जल चढ़ाने के लिए निकल पड़ते हैं। उज्जैन के संदीपनी आश्रम में इस दिन विशेष प्रसाद वितरण और अतिरिक्त आरतियाँ की गईं। दूर-दूर से आए भक्तों ने बताया कि यह दिन उनके जीवन का सबसे शुभ दिन रहा।

एक दिन, अनेक धर्म: बुद्ध, जैन और सिख भी मनाते हैं गुरु पूर्णिमा

यह दिन सिर्फ हिंदू नहीं, बल्कि बुद्ध, जैन और सिख समुदाय भी विशेष रूप से मनाते हैं। बुद्ध ने इसी दिन बनारस के सारनाथ में अपना पहला धर्मचक्र प्रवर्तन किया था। जैन धर्म में इस दिन को महावीर ने अपने शिष्यों को ज्ञान देना शुरू किया था। सिख धर्म में गुरु नानक के आध्यात्मिक उत्तराधिकार को याद किया जाता है। इस तरह गुरु पूर्णिमा एक ऐसा त्योहार है जो धर्मों की सीमाओं को पार कर जाता है।

अगला बड़ा आयोजन: हरि हर मिलन 2025

महाकालेश्वर मंदिर के अगले बड़े आयोजन के रूप में 4 नवंबर, 2025 को हरि हर मिलन 2025 मनाया जाएगा। इस दिन शिव जी (हर) की मूर्ति को गोपाल मंदिर की ओर ले जाया जाएगा, जहाँ विष्णु जी (हरि) की मूर्ति से उनकी भेंट होगी। यह अनूठा अनुष्ठान शिव-विष्णु के एकत्व का प्रतीक है — एक ऐसा संदेश जो आज के समय में विभाजन के बजाय एकता की ओर इशारा करता है। इस यात्रा में लाखों भक्त शामिल होंगे, जिनके लिए यह दिन अपने आप में एक आध्यात्मिक अनुभव होगा।

क्यों इतना महत्वपूर्ण है गुरु पूर्णिमा?

यह दिन सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि एक जीवन दर्शन है। आज के दौर में, जहाँ ज्ञान बस एक क्लिक की दूरी पर है, गुरु का स्थान अक्सर भूल जाया जाता है। लेकिन गुरु पूर्णिमा हमें याद दिलाता है कि सच्चा ज्ञान किसी की किताबों से नहीं, बल्कि किसी के जीवन से आता है। एक गुरु वह होता है जो आपको नहीं बताता कि क्या करना है, बल्कि आपको वह रास्ता दिखाता है जो आप खुद नहीं देख पा रहे।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

गुरु पूर्णिमा क्यों वेद व्यास पूर्णिमा भी कहलाता है?

गुरु पूर्णिमा को वेद व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है क्योंकि महर्षि वेद व्यास का जन्म इसी दिन हुआ था। उन्होंने वेदों का संकलन, उपनिषदों का संग्रह और महाभारत की रचना की, जिसमें भगवद्गीता भी शामिल है। इसलिए उन्हें ज्ञान के गुरु माना जाता है, और इस दिन उनकी श्रद्धांजलि दी जाती है।

बस्म आरती क्यों महाकालेश्वर मंदिर में विशेष है?

महाकालेश्वर मंदिर में बस्म आरती केवल शिव के लिए नहीं, बल्कि त्याग और निर्ममता का प्रतीक है। शिव पुराण के अनुसार, शिव जी बस्म से लिपटे हुए हैं क्योंकि वे संसार के सभी भावनाओं से परे हैं। यह आरती भक्तों को याद दिलाती है कि सब कुछ अस्थायी है — धन, सम्मान, शरीर — सब एक दिन धूल में बदल जाएगा।

कान्हा यात्रा क्या है और यह कैसे जुड़ी है गुरु पूर्णिमा से?

कान्हा यात्रा श्रावण माह की शुरुआत पर शुरू होती है, जो गुरु पूर्णिमा के बाद आती है। भक्त नर्मदा, गंगा या यमुना के तीर्थ पर नहाकर शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं। यह यात्रा आध्यात्मिक शुद्धि और शिव के प्रति भक्ति का प्रतीक है। उज्जैन इस यात्रा का एक महत्वपूर्ण बिंदु है, क्योंकि यहाँ से शिव की शक्ति का अनुभव अलग होता है।

हरि हर मिलन क्यों महत्वपूर्ण है?

हरि हर मिलन शिव और विष्णु के एकत्व का प्रतीक है — दोनों देवता जो अक्सर अलग माने जाते हैं, लेकिन इस दिन एक साथ मिलते हैं। यह एक ऐसा संदेश है जो आज के समय में धर्मों और समुदायों के बीच एकता की आवश्यकता को दर्शाता है। यह अनुष्ठान उज्जैन के दो महत्वपूर्ण मंदिरों के बीच एक भावनात्मक और आध्यात्मिक बंधन को दर्शाता है।

गुरु पूर्णिमा पर गुरु मंत्र क्यों मिलता है?

गुरु पूर्णिमा पर गुरु मंत्र देने की परंपरा इसलिए है क्योंकि इस दिन ज्ञान की शक्ति सर्वाधिक प्रबल मानी जाती है। एक गुरु मंत्र केवल शब्द नहीं, बल्कि आत्मा का एक अंश होता है। जब कोई शिष्य इसे प्राप्त करता है, तो वह अपने गुरु के साथ एक आध्यात्मिक बंधन बना लेता है, जो जन्म-मरण तक चलता है।

क्या बुद्ध और जैन धर्म में गुरु पूर्णिमा का अर्थ अलग है?

हाँ, बुद्ध धर्म में इस दिन को धर्मचक्र प्रवर्तन दिवस के रूप में मनाया जाता है, जब बुद्ध ने पहली बार धर्म का उपदेश दिया। जैन धर्म में इस दिन को महावीर ने अपने शिष्यों को ज्ञान देना शुरू किया था। दोनों ही धर्म गुरु को ज्ञान के प्रकाश का स्रोत मानते हैं — यही वह सामान्य बिंदु है जो सभी धर्मों को जोड़ता है।

टिप्पणि

  1. Krishnan Kannan

    Krishnan Kannan नवंबर 6, 2025 AT 17:16

    बस्म आरती देखकर लगा जैसे सब कुछ धूल में मिल जाएगा... लेकिन फिर भी दिल भर गया। शायद इसीलिए तो लोग बस्म घर ले जाते हैं।

  2. Raveena Elizabeth Ravindran

    Raveena Elizabeth Ravindran नवंबर 8, 2025 AT 04:26

    ये सब धार्मिक नाटक अब बहुत बोरिंग हो गए हैं। बस्म आरती? बस एक फोटो शूटिंग है। ज्ञान के लिए किताबें पढ़ो, ऐसे नाटक नहीं।

  3. Dev Toll

    Dev Toll नवंबर 8, 2025 AT 20:26

    गुरु पूर्णिमा पर वेद व्यास का जन्म हुआ था, ये तो सच है। लेकिन आजकल लोग गुरु को बस एक फोटो के लिए नहीं, बल्कि जीवन बदलने के लिए चाहते हैं।

    मैंने एक गुरु को देखा था, जो बिना कुछ कहे बस चाय पीते रहते थे। और फिर एक दिन मैं समझ गया।

  4. utkarsh shukla

    utkarsh shukla नवंबर 10, 2025 AT 16:39

    भाई ये आरती देखकर मेरा दिल फट गया! शिव के बस्म वाले चेहरे पर जब धूप गिरी तो मैं रो पड़ा! ये कोई आरती नहीं, ये तो आत्मा की आवाज है! जिंदगी में भी इतना त्याग करना होगा! जय महाकाल!

  5. Amit Kashyap

    Amit Kashyap नवंबर 11, 2025 AT 12:55

    हिंदू धर्म की महिमा का ये अद्भुत प्रदर्शन है! बुद्ध, जैन, सिख सब इसी दिन को मनाते हैं - ये हमारी संस्कृति की शक्ति है! अगर कोई इसे नहीं समझता तो वो अज्ञानी है!

  6. mala Syari

    mala Syari नवंबर 13, 2025 AT 09:19

    इतना भावुक लिखा है कि लगता है किसी ने विकिपीडिया के सारे आर्टिकल्स को एक साथ फेंक दिया। बस्म आरती को आध्यात्मिक बनाने के लिए इतना जोर लगाया है कि लगता है लेखक खुद बस्म से लिपटा हुआ है।

  7. Kishore Pandey

    Kishore Pandey नवंबर 14, 2025 AT 08:43

    प्रस्तुत लेख में ऐतिहासिक तथ्यों के साथ आध्यात्मिक अतिशयोक्ति का मिश्रण उपलब्ध है। वेद व्यास के जन्म की तारीख पर विवाद है। बस्म के प्रतीकात्मक अर्थ को अत्यधिक साधारणीकृत किया गया है।

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