पहलगाम आतंकी हमले की पीड़िता ऐशान्या द्विवेदी ने लिया प्रेमानंद महाराज से आध्यात्मिक सहारा

शोक की गहराई से आध्यात्मिक राहत की ओर

पति का अचानक छिन जाना—सोचिए, एक खुशहाल हनीमून ट्रिप और पल भर में सब कुछ बदल जाता है। ठीक यही हुआ ऐशान्या द्विवेदी के साथ। उनके पति शुब्हम द्विवेदी, जो पेशे से बिजनेसमैन थे और कानपुर से थे, जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले में 22 अप्रैल को हुए पहलगाम आतंकी हमले में मारे गए। हमले में कुल 26 लोग जान गंवा बैठे, लेकिन ऐशान्या के लिए दर्द और सदमा बयां करने के लिए शब्द कम पड़ जाते हैं—क्योंकि ये हमला उनकी आंखों के सामने हुआ।

इस गहरी और असहनीय पीड़ा के बीच, ऐशान्या को कुछ सहारा मिला प्रेमानंद महाराज के पास। वे अपने ससुर संजय द्विवेदी समेत पूरे परिवार के साथ महाराज के आश्रम गईं। वहां वो काफी भावुक दिखीं, आंखों में आंसुओं के साथ उन्होंने महाराज से पूछा—अब आगे कैसे जिएं?

मानसिक शांति के लिए साधना और श्रद्धा

प्रेमानंद महाराज ने ऐशान्या को सहजता से प्रेमपूर्वक समझाया—“नाम जप करिए।” यानी ईश्वर का नाम जपना ही असली शांति का रास्ता है। उन्होंने बताया कि दुःख कम नहीं होगा, लेकिन साधना, श्रद्धा और भक्ति से भीतर ताकत जरूर मिलेगी। उन्होंने ऐशान्या के परिवार को भी मिलकर बैठने और एक-दूसरे को सहारा देने की सलाह दी। आश्रम का माहौल भी वहां मौजूद लोगों को थोड़ी देर के लिए सामान्य जीवन का एहसास करा गया।

मुलाकात के दौरान प्रेमानंद महाराज ने ऐशान्या को प्रसाद दिया और आशीर्वाद दिया कि वो जिंदगी में फिर से भरोसा और उम्मीद जुटा सकें। इस पूरे भावुक पल का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। कई लोगों ने ऐशान्या की हिम्मत और उनके परिवार की एकजुटता की सराहना की।

ऐशान्या इस हिम्मत के पीछे कई वजहें खुद ही जनता को बता चुकी हैं। उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर (जिसमें भारतीय सेना ने पाकिस्तान के आतंकी कैंपों को निशाना बनाया था) के तुरंत बाद अपने गुस्से और उम्मीद के बीच सरकार का शुक्रिया अदा किया। साथ ही, ऑपरेशन महादेव में पहलगाम हमले के मुख्य मास्टरमाइंड सुलैमान शाह के खात्मे पर मिली राहत व्यक्त की थी। फिर भी ऐशान्या लगातार यही दोहराती हैं कि उनका दर्द कभी कम नहीं होगा—लेकिन शांति की तलाश वे अब आध्यात्मिकता, सरकार की कार्रवाई और समाज के सहारे में कर रही हैं।

ऐसी घटनाएं दिखाती हैं कि आतंक के घाव सिर्फ सैनिक कार्रवाई या बयानबाजी से नहीं भरते। पीड़ित परिवार कभी भुला नहीं पाते, लेकिन वे अपने तरीके से आध्यात्मिक, सामाजिक और राष्ट्रीय स्तर पर सांत्वना खोज रहे हैं। ऐशान्या द्विवेदी की इस आध्यात्मिक यात्रा ने पूरे देश का ध्यान उनके साहस और जीवन की ओर खींचा है।

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