हरियाणा विधानसभा चुनाव के परिणाम निस्संदेह राजनीतिक जलवायु को हिला कर रख दिया। जीत के बाद कांग्रेस के कई शीर्ष नेता, जिनमें मलिकरजून खड़गे, ने इस परिणाम को ‘अस्वीकार्य’ और ‘प्रजनन करवाने वाले डिवाइस की जीत’ कहा। इस बयान के जवाब में हिंदुस्तान चुनाव आयोग ने एक कड़ी चिट्ठी लिखी, जिसमें कांग्रेस के इस ‘अप्रतिनिधिक’ कदम की निंदा की गई। आयोग ने इसे ‘देश की लोकतांत्रिक धरोहर में अनसुना’ और ‘स्वतंत्र अभिव्यक्ति के वैध दायरे से बाहर’ बताया।
चुनाव आयोग के पत्र में कहा गया कि किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में मतदाता की इच्छा को चुनौती देना अस्वीकार्य है। पत्र में यह स्पष्ट किया गया कि अधिनियम और नियमों के दायरे में हुए चुनाव के परिणाम को चुनौती देना ‘अधिनियमित और नियामक ढांचे के विरुद्ध’ है। यह पहला बार है जब कोई मुख्यधारा का पार्टी ऐसे तरीके से चुनाव की वैधता को सवाल में लाए।
पत्र में यह भी बताया गया कि कांग्रेस की टीम ने तीन जिलों में ईवीएम के बैटरी स्तर के आधार पर असमानता का दावा किया। उन्होंने कहा कि 99% बैटरी चार्ज वाले मशीनों में उन्हें हार का सामना करना पड़ा, जबकि 60-70% चार्ज वाले मशीनों में उनके पक्ष में परिणाम आए। इन बयानों को EC ने ‘भ्रमित करने वाले तर्क’ करार दिया।
कांग्रेस ने एक तथ्य-खोज पैनल गठित किया, जिसने सभी 22 जिलों में ईवीएम वोट डेटा में विसंगति दर्ज की। पैनल ने बताया कि सात जिलों—भिवानी, गुरुग्राम, रेवाड़ी, पलवल, फरीदाबाद, सोनीपत और सोहना—में भाजपा ने 30 में से 25 सीटें जीतीं, जिसे उन्होंने ‘विस्तृत ईवीएम हेरफेर’ कहा।
पैनल ने यह भी कहा कि लगभग सभी क्षेत्रों में ईवीएम द्वारा गिने गए वोटों का मिलान नहीं हो रहा था, सिवाय छः क्षेत्रों—इंद्री, बेरी, लोहारू, फतेहाबाद, हिसार और सोहना—के। इस दौरान कांग्रेस के नेता करन दलाल ने रिपोर्ट में सवाल उठाया कि चुनाव आयोग ने क्यों केवल जिला-स्तर के प्रतिशत ही जारी किए, न कि प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र का विस्तार से डेटा।
वहीं, हरियाणा में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जैसे कुमारी सेलजा और भूपिंदर सिंह हुडा ने ‘प्रोटेस्ट’ के साथ ही परिणाम स्वीकार करने की बात कही। हुडा ने कहा, “हम हैरान हैं, परंतु लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मानेंगे।” यह विरोधाभासी स्थिति दिखाती है कि पार्टी के राष्ट्रीय स्तर पर उठाए गए कदम और राज्य स्तर पर नेताओं के व्यवहार में बड़ा अंतर है।
सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया फैसला ने भी इस मुद्दे को अधिक जटिल बना दिया। कोर्ट ने एक हरियाणा पंचायत चुनाव में ईवीएम पुनर्गणना के बाद परिणाम बदलने को माना और सभी बूथों के वोटों की पुनः गिनती का आदेश दिया। यह पहला केस था जहाँ न्यायालय ने ईवीएम की वैधता पर इतना सक्रिय हस्तक्षेप किया। इस घटना ने राष्ट्रीय स्तर पर ईवीएम भरोसे के सवाल को फिर से उजागर किया, पर साथ ही यह भी दिखाया कि मौजूदा तंत्र में अगर गलती हो तो उसे ठीक करने की प्रक्रिया मौजूद है।
इन सभी घटनाओं के बीच भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली को एक गंभीर परीक्षण का सामना करना पड़ रहा है। एक ओर कांग्रेस की ‘अस्वीकार’ की घोषणा, और दूसरी ओर चुनाव आयोग की ‘स्वीकार’ की पुकार, दोनों ही जनता के भरोसे को जांचने का अवसर बन गई हैं। चाहे ईवीएम में तकनीकी त्रुटि हो या राजनीति की नई तरकीब, यह स्पष्ट है कि आगे कई सवालों के जवाब ढूंढने बचे हैं।
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